वह 14 अगस्त की उजली सुबह थी जब मैं लेह हवाई अड्डे से दिल्ली आने की जल्दी में था । मेरी वापसी का कार्यक्रम आनन् - फानन में हुआ और मै समझ ही नहीं पाया कि मुझे लामाओं की धरती से इतनी जल्दी लौटना पड़ेगा । एक सुन्दर सी युवती की सुरीली आवाज के साथ "सर चाय लेंगे या काफी " मुझे ध्यान आया कि लद्धाख पीछे छूट गया है ,पीछे रह गई है पेगोंग लेक, स्थानीय लोगों द्वारा की गई मेहमानवाजी और गुडगुड चाय । लेह से लगभग 2oo किलोमीटर दूर एक गॉव में उपहार में लोग छंग (देसी शराब) लेकर आये थे, लेकिन मुझे उनकी वो गुडगुड चाय पीने का अवसर मिला जिसकी मिठास एयर हास्टेस के हाथों परोसी गई चाय से कई गुना ज्यादा थी ।
मैंने लद्धाख रहते हुए काफी विडिओ फुटेज जमा किया और योजना थी कि इसे विशेष प्रकार से एडिट करूँगा । एक लम्बा वक्त बीत जाने के बाद भी मैं ऐसा न कर सका । लद्दाख में भयंकर बाढ़ आई, उस जलजले की तस्वीरें देख कर मुझे बेचैनी होती रही और मैं उन भोले- भाले लोगों की सलामती के लिए दुआ करता रहा ।वहां एक गाँव में एक व्यक्ति मुझसे बात करते हुए पूछने लगा कि आपने दिल्ली शहर देखा है ? मेरे हाँ कहने पर उसने पूछा कि दिल्ली का बाजार लेह के बाजार से भी बड़ा है?मैं कई देर तक उस आदमी का चेहरा गौर से देखता रहा जिसे लेह ही राजधानी सा लगता है ।
मैं अब इस वीडियो को एडिट कर रहा हूँ । पूरानी यादें ताजा हो रही हैं ......इस वीडियो में कहीं -कहीं मेरा चेहरा भी दिखता है ...... कभी लद्दाख के भूरे पत्थरों की तरह तो कभी जैसे पेंगोंग के पानी की तरह . मैं अपने चेहरे को नजरंदाज करके एडिटिंग मशीन पर एक बौद्ध मठ से ॐ मणि पद्मे हूम की आवाज सुनता हूँ जो मुझे उन लोगो के बीच होने का अहसास कराती है ।
ये ही मेरे लिए फुरसत के बहाने हैं जब मैं गुडगुड चाय की महक को महसूस करता हूँ ।
डॉ.कृष्ण कुमार
मैंने लद्धाख रहते हुए काफी विडिओ फुटेज जमा किया और योजना थी कि इसे विशेष प्रकार से एडिट करूँगा । एक लम्बा वक्त बीत जाने के बाद भी मैं ऐसा न कर सका । लद्दाख में भयंकर बाढ़ आई, उस जलजले की तस्वीरें देख कर मुझे बेचैनी होती रही और मैं उन भोले- भाले लोगों की सलामती के लिए दुआ करता रहा ।वहां एक गाँव में एक व्यक्ति मुझसे बात करते हुए पूछने लगा कि आपने दिल्ली शहर देखा है ? मेरे हाँ कहने पर उसने पूछा कि दिल्ली का बाजार लेह के बाजार से भी बड़ा है?मैं कई देर तक उस आदमी का चेहरा गौर से देखता रहा जिसे लेह ही राजधानी सा लगता है ।
मैं अब इस वीडियो को एडिट कर रहा हूँ । पूरानी यादें ताजा हो रही हैं ......इस वीडियो में कहीं -कहीं मेरा चेहरा भी दिखता है ...... कभी लद्दाख के भूरे पत्थरों की तरह तो कभी जैसे पेंगोंग के पानी की तरह . मैं अपने चेहरे को नजरंदाज करके एडिटिंग मशीन पर एक बौद्ध मठ से ॐ मणि पद्मे हूम की आवाज सुनता हूँ जो मुझे उन लोगो के बीच होने का अहसास कराती है ।
ये ही मेरे लिए फुरसत के बहाने हैं जब मैं गुडगुड चाय की महक को महसूस करता हूँ ।
डॉ.कृष्ण कुमार
MAN-MAUZI YAYAVAR Dr KK JI, jIND ME INTZAR RHEGA AAPKA!!!
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