अभी हाल ही में ४१ वां अंतररास्ट्रीय फिल्मोत्सव गोवा में संपन्न हुआ । इस समारोह का एक मुख्य आकर्षण निर्देशक जयदीप की डाक्यूमेंट्री 'लिविंग होम' रही। 'लिविंग होम' को मिले सम्मान और मंच ने उन धारणाओं को तोड़ दिया जो डाक्यूमेंट्री फिल्मों की व्यूवरशिप को लेकर बनी हैं । आमतौर पर ऐसा मान लिया जाता है कि डाक्यूमेंट्री फ़िल्में डिब्बे में बंद रखने के लिए ही बनाई जाती हैं ।थियेटर में रिलीज करने की बात करना तो और भी बड़ा मजाक माना जाता रहा । ये जयदीप और उनके सहयोगियों की मेहनत का नतीजा है कि उनकी फिल्म पहली रिलीज डाक्यूमेंट्री बनी और देखने वालों ने इसे जी भर के सराहा । अब कुछ पूर्वाग्रहों के चश्मे को उतारने और सत्य को देखने की जरुरत है । इससे पहले भी 'वार एंड पीस ' 'नाइन टू इलेवन' जैसी फिल्मों के जरिए ऐसे प्रयास हो चुके हैं........ उम्मीद है कि प्रयास और भी होंगे ...... कोई और भी हैं जो उस अँधेरे की चादर को चीरने का प्रयास करेंगे ...... जो उजाला होने नहीं देता ....... ।
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