Saturday, September 5, 2009

लम्हों की खता सदियों की सज़ा

पिछले दिनों अमरनाथ की यात्रा के बाद लगातार शिमला और देहरादून की यात्रा पर रहा।

पहले कश्मीर की बात

बाबा अमरनाथ के दर्शन करने की सनक थी इसलिए बालताल से शुभ मुहूर्त में पैदल निकल पड़ा . बाबा बर्फानी के परम भक्त कबूतरों से मिलने की इच्छा में ये भी ख्याल न रहा कि सुबह पहले रास्ते में कोई जयकारा बोलने वाला भी नहीं मिलेगा . राह कठिन थी और शरीर साथ नहीं दे रहा था ,काफी ऊँची चढाई से उतरते समय एक राहगीर मिला जिसके कंधे पर लकड़ी के कुछ तख्तों का गठ्टर था। जब मैंने उससे पूछा 'बाबा आप इतनी ऊंचाई पर ये सामान लेकर कैसे चढेंगे? वह छोटा सा उत्तर देकर आगे बढ़ गया, 'क्या करें करना पड़ता है' ।

अब बात शिमला की

मुझे रिज जाना था,लिफ्ट के रास्ते पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था । एक बूढा आदमी दो पोर्टेबल टीवी कंधे पर बांधे मेरे आगे-आगे चल रहा था। मैं उस बूढे व्यक्ति से कुछ भी पूछने का साहस नहीं कर पाया । मुझे पता था , मै जो पूछूंगा उसका जवाब क्या मिलेगा ।

आज फ़िर मुझे अमरनाथ यात्रा मे मिला वह तख्ते वाला बाबा याद आ रहा था।

मै अब अक्सर अपनी अमरनाथ यात्रा के बारे में सोचता हूँ ,कश्मीर और शिमला घूमने वाले सैलानियों के बारे में सोचता हूँ .......... और सोचता हूँ ,देश में न जाने कितने ऐसे बाबा होंगे जिनके कंधे झुक गए हैं लेकिन कमबख्त बोझ है कि कम होने का नाम नहीं लेता .........

Saturday, July 11, 2009

अपनों से अपनी बात

मित्रो!


आज बहुत दिनों बाद आप से मिलना मुनासिब हुआ है। ब्लॉग बना देने से मैं इसलिए भी बचता रहा हूँ कि अक्सर ऐसा होता है कि क्षणिक उत्तेजना में ब्लॉग का सृजन तो हो जाता है लेकिन नियमित लेखन होना थोडा मुश्किल होता है।खैर !हिंदी के ब्लॉग जगत में भले ही म्हारा हरियाणा अभी शिशु ही है लेकिन अपना प्रयास रहेगा कि संवाद में संवेदना बनी रहे. ग्रामीण भारत के उन पहलुओ से आपको रूबरू करवाया जा सके जो अब तक हाशिये पर है। इस ब्लॉग के कंटेंट को लेकर भी कोई खास किस्म का नियोजन नहीं किया गया है . बस प्रयास किया जाएगा कि आपको यहाँ एक अपनेपन का एहसास हो॥अब कुछ अपनी बात...... मेरे जैसे और भी बहुत से देहात से आये लोगो कि ये स्थाई पीडा रही है कि अपनी पेशेवर जगत में खुद को अपने मौलिक रूप से बचाए रखना बड़ा काम है,जब मैं घर से निकला था तब कोरा भावुक मन था, जैसा खुद महसूस करता था वैसी ही दुनिया को भी समझता है लेकिन ज्यों-ज्यों इस दुनियादारी से साबका होता गया मौलिक मान्यताएं भी बदली है..भाषा,क्षेत्र,जाति को लेकर इस तथाकथित बुधिजिवी वर्ग में इतने पूर्वाग्रह देखने को मिले कि कभी- कभी मन बड़ा खिन्न हो जाता था. एक बहुत बड़े वर्ग का ये मानना रहा है कि हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग पढने लिखने में कैसे माहिर हो सकते है? पूर्वी उत्तर प्रदेश में भाषा का पांडित्य उनके पिछडेपन को कभी जाहिर नहीं होने देता था और वर्ग विशेष कि स्वयं श्रेष्टतावादी सोच सभी से जग जाहिर है. बुधिजिवियो के व्यंगबाण हमे भी तोड़ देते अगर एक जिद्दी धुन न होती खुद की शर्तो पर जीने की............ बस यही एक प्रेरणा का साधन रही है. भारतीय समाज के सबसे बड़े मीडिया माध्यम हिंदी फिल्मो ने हरियाणा की समृद्ध लोक संस्कृति को फूहड़ हास्य की विषयवस्तु बनाया है। यहाँ की बोली का एक ठेठपन अपनी मौलिकता की छाप छोड़ने के बजाय सस्ता हास्य बन कर रह गयी है . बाजार ने इसके मर्म पर चोट की है और अफ़सोस बस यही है कि इस प्रगतिशील समाज में ऐसे बौद्धिक रचनात्मक फिल्मकारों को कभी इसका एहसास नहीं होगा कि वो समाज को एक समृद्ध लोक संस्कृति की क्या तस्वीर दिखा रहे है? ऐसे ही कुछ ग्रामीण लोक संस्कृति, साहित्य,बोली,भाषा,लोक प्रतिभा और ग्रामीण समाज के विमर्श का मंच बनाया जाएगा म्हारा हरियाणा को...


अंत में एक निवेदन और है आप सभी से कि म्हारा हरियाणा को कदाचित भी क्षेत्रवाद से जोड़ के न देखा जाए . ये सम्पूर्ण भारतीय ग्रामीण समाज की लोक चेतना का मंच है और हरियाणा कि मिट्टी तो बस इसकी निमित्त मात्र है!


अभी बस इतना ही अगली पोस्ट में एक नए तेवर और कलेवर के साथ मुलाकात होगी...


आपका अपना


डॉ.कृष्ण कुमार


Saturday, June 20, 2009

म्हारा हरियाणा

डॉ.कृष्ण कुमार :
हरियाणा में महेन्द्रगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव से निकलकर दर्शन शास्त्र में पी-एच. डी। पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद कुछ समय दूरदर्शन और इंडिया टी.वी. में कार्य किया, अब टी.वी. कार्यक्रम निमार्ण में सक्रिय। विकास की एक नयी इबारत देशोस्ति हरियानाख्याम: पृथ्वीयां स्वर्ग सन्निभः
हरियाणा नाम का एक देश है जो पृथ्वी पर स्वर्ग के समान है। ये पंक्तियां एक पुरातन लेख से ली गई हैं और आधुनिक हरियाणा के विकास की रंगोली ने इन्हें पुनः रंगीन कर दिया है।
म्हारा हरियाणा : मिट्टी की सुगंध
हरियाणा में प्रचलित‘‘बम लहरी’’ की खनक सरहदों के पार महसूस की जाए, शादी-ब्याह में बाजे बजें और फसल कटे तो सारंगी। यो सै 'म्हारा हरियाणा' लगभग दो वर्ष पहले दूरदर्शन के लिएम्हारा हरियाणाकार्यक्रम बनाना शुरू किया। कार्यक्रम की शूटिंग के दौरान लोगों से सीधा संवाद स्थापित किया। इसी बहाने उनके दुःख दर्द और समस्याओं को जानने का अवसर मिला। हम दर्द की दवा नहीं बेचते लेकिन कोशिश है कि वंचित लोग ज्यादा से ज्यादा जागरूक हों जिससे उनके अधिकारों की बहाली हो सके। जब कार्यक्रम बनाने शुरू किए तब कुछ शुभचिंतकों ने ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित कार्यक्रमों की सफलता पर सन्देह जाहिर किया था।मेरा उद्देश्य आंशिक रूप से ही उसी दिन पूरा हो गया जब सातवीं कक्षा में पढने वाली एक गाडिया लुहार बच्ची ने परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल करने पर अपने डेरे पर आमन्त्रित किया। कुछ समय पहले उस बच्ची के अभिभावकों को सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रोत्साहित किया था।ऐसे लोग जिनको जीवन का हर दिन संघर्ष की इबारत से शुरू होता है उनके लिए कार्यक्रम में पहले से ही काफी जगह हमने निश्चित कर दी थी। दिल्ली की मंडी में हौसले गिराकर हिम्मत रखने की बात करने वालों को हमने नजदीक से देखा है। फिर भी दुनिया के असली मायने आखिर तक समझ में नहीं आते।
मन लागा यार फकीरी में किस्मत हाथों की लकीरों में ठुकरा दे जमाने को, बैठ फकीरी में
हमारे प्रयासों की झलक आपको मिलती रहेगी। अपने अनुभवों को हम आपसे साँझा करते रहेगे अगर आप चाहें ..... बड़े शायर की इन पंक्तियों के साथ ...

अगर फुर्सत मिले
पानी की तहरीरों को पढ लेना, हर एक दरिया हजारों साल अफसाना सा लगता है। शेष फ़िर... आपका अपना डॉ.कृष्ण कुमार