Friday, August 16, 2019

शांघड का सफ़र


शांघड का सफ़र


                   दिल करदा कि बस्सी जाइए

पहले मण्डी शहर के बारे में ...
मेरे दोस्त विनोद 'भावुक'ने अपनी किताब 'मेरियां ग़ल्ला गाजल बेल' में मंडी शहर के बारे में लिखा है  -
    फिरी सद्दे आए मंडिया
    फिरी दिल ने लाए मंडिया
    दिल करदा कि बस्सी जाइए
    छड्डी कांगडा माए मंडिया
उन्हें कांगड़ा छोड़ने का ग़म है मगर मंडी से मोहब्बत इतनी है कि यहीं बस जाने को दिल करता है ।

मैं जब भी मंडी के विक्टोरिया ब्रिज या ऐतिहासिक सेरी मंच से गुज़रता हूँ तो लगता है इसकी भव्यता और ज़्यादा बढ़ गई है। वैसे भी मंडी बड़ी नज़ाकत वाला शहर है जो सुकेत के साथ चंद्रवंशी राजाओं की रियासत रहा। मौजूदा वक़्त में यहाँ के नज़दीकी गाँव भाम्बला की कंगना रानौत भी न जाने कितने दिलों की मल्लिका बनी हुई है । मण्डी फ़ैशन के लिहाज़ से भी मुंबई के बाद शिलांग और देहरादून से किसी मायने में कम नहीं ।
 इस बार की यात्रा में पहले दिन मंडी से रिवालसर फिर शांघड और उसके बाद पराशर जाना तय हुआ । आज का दिन सैंज वैली में शांघड के नाम है ...साथ में हैं पत्रकार विनोद 'भावुक'और अनूठे यायावर संजय भारद्वाज

शांघड़ : प्रेमियों को देता है पनाह

 देवदारों के जंगल से घिरा शांघड़ क़ुदरती तौर पर बड़ा ख़ूबसूरत है । शांघड मण्डी के ओट से लगभग 40 किलोमीटर दूर सैंज घाटी में दिल को सकून देने वाला देवस्थल है । इस जगह पर एक बहुत सुन्दर विशाल मैदान है और यहीं शंगचुल का मंदिर है जो प्रेमियों की पनाहगाह माना जाता है ।
शांघड मैदान एक सुरक्षित क्षेत्र है जहां पुलिस टोपी और बेल्ट लगाकर प्रवेश नहीं करती । इसी के साथ इस जगह की कई परंपराएँ सदियों से  चली आ रही हैं जैसे कि इस जगह पर कोई सरकारी कर न लगे,यहां कोई डाली तक न काटी जाए। किसी तरह की कोई हिंसा न हो और कोई किसी को तंग न करे। प्राचीन काल से चली आ रही एक परंपरा ये भी है कि जब प्रेमी जोड़े घर से भागकर यहाँ पहुँचते तो ये मंदिर उनको पनाह देता । यहाँ आने के बाद बातचीत के जरिये मसला सुलझाया जाता ,क़ानून इसमें कोई दख़ल नहीं देता था । इस प्रकार आज भी यहां ये देव प्रथा है और शंगचुल प्रेमियों को पनाह देता है।
इन सब ख़ासियतों के अलावा शांघड उन लोगों के लिए बेहतरीन जगह है जिनका सकून कोई मोहब्बत के बहाने या फिर ज़माना ले गया ।



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